खुशखबरी : आखिर मेहनत रंग लायी, रंगमय हुआ उत्तराखंड वन विभाग का जिम्मेदारी भरा प्रयास

बाघों की संख्या में हुई बढ़ोत्तरी, वन विभाग गदगद

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खुशखबरी : आखिर मेहनत रंग लायी, रंगमय हुआ उत्तराखंड वन विभाग का जिम्मेदारी भरा प्रयास
तराई पश्चिमी वन प्रभाग के जंगल में घूमता बाघ
खुशखबरी : आखिर मेहनत रंग लायी, रंगमय हुआ उत्तराखंड वन विभाग का जिम्मेदारी भरा प्रयास
खुशखबरी : आखिर मेहनत रंग लायी, रंगमय हुआ उत्तराखंड वन विभाग का जिम्मेदारी भरा प्रयास
खुशखबरी : आखिर मेहनत रंग लायी, रंगमय हुआ उत्तराखंड वन विभाग का जिम्मेदारी भरा प्रयास
  • तराई पश्चिमी वन विभाग से खुशखबरी भरी खबर
  • बाघों की संख्या में हो रही है लगातार वृद्धि
  • 39 की जगह 53 हुई बाघों की संख्या
  • पिछले तीन वर्षों से वन विभाग कर रहा था बाघों की देखरेख
  • वन विभाग के सामने उत्साह के साथ ही खड़ी हुई एक बड़ी चुनौती
  • ‘‘मानव वन्य जीव संघर्ष‘‘ की घटनाओं का भी बढ़ने लगा ग्राफ

(काला सच, ब्यूरो): उत्तराखण्ड के तराई पश्चिमी वन प्रभाग से एक खुशखबरी भरी खबर निकल कर सामने आयी है। पिछले कुछ वर्षों से जहां बाघों की संख्या में लगातार कमी देखी जा रही थी, वहीं वन विभाग के संरक्षण और अथक प्रयास के चलते अब बाघों की संख्या में उम्मीद से अधिक वृद्धि देखी गई है। जिसके चलते उत्तराखण्ड का तराई वन प्रभाग पूरी तरह गदगद है और उसमें उत्साह भरा हुआ है।

आपको बता दें कि उत्तराखण्ड प्रदेश देवभूमि प्रदेश होने के साथ साथ एक वन प्रदेश भी है जिसका अधिकांश क्षेत्र जंगलों से घिरा हुआ है। जहां एक तरफ इन जंगलों में सागौन, साल, यूकेलिप्टिस, शीशम और चीड़ के कीमती ऊंचे ऊंचे वृक्ष हैं तो वहीं दूसरी और इन जंगलों में हाथी, बाघ, तेंदुआ, गुलदार, हिरन के साथ ही अन्य कई प्रकार के जानवर भी रहते हैं जिससे इन जंगलों की शोभा में चार चांद लगे हुए हैं। जिसके चलते देश विदेश के पर्यटक भी उत्तराखण्ड के जंगलों में इन जानवरों को देखने के लिए घूमने आतेे हैं जहां आकर पर्यटक इन जंगली जानवरों का भी भरपूर लुत्फ उठाते हैं।

पर्यटकों की खुशी उस वक्त देखते बनती है जब इन जंगलों में घूमने के दौरान बाघ देखने को मिल जाये। वो भी एक दो नहीं, बल्कि जंगल के चप्पे चप्पे पर अनेकों बाघ। इस दौरान उत्तराखण्ड के जंगलों में पर्यटकों की खुशी का ठिकाना नहीं रहता है। पर्यटकों की इस खुशी का कारण कोई ओर नहीं बल्कि उत्तराखण्ड का वन विभाग है जिसकी कड़ी मेहनत और अथक प्रयासों के चलते ही जंगलों में बाघों की भरमार हुई है। जहां वर्ष 2018 से पहले तराई पश्चिमी वन प्रभाग के इन जंगलों में गिने चुने ही बाघ देखे जा सकते थे, जिससे वनों की रौनक फीकी पड़ने लगी थी। जिसके चलते बाघों की संख्या बढ़ाने के लिए उत्तराखण्ड वन विभाग ने बाघों के संरक्षण का बीड़ा उठाया और रणनीति के तहत प्रयास करने शुरू करते हुए बाघों की देखरेख शुरू कर दी। आखिरकार लगातार तीन वर्षों के जिम्मेदाराना प्रयासों के बाद वन विभाग की मेहनत रंग ले ही आयी। जिसका नतीजा यह निकाला की तराई पश्चिमी वन प्रभाग में बाघों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि देखी गई और तराई पश्चिमी वन प्रभाग के जंगलों में बाघों की भरमार हो गई। बाघों की यह भरमार ही देश विदेश से इन जंगलों में घूमने आ रहे पर्यटकों के चेहरों की रौनक बनी है। वहीं उत्तराखण्ड का तराई पश्चिमी वन प्रभाग भी अपनी इस मेहनत से गदगद है और उसमें उत्साह भरा हुआ है।

39 बाघों से बढ़कर 53 हुई बाघों की संख्या

 वन विभाग की गणना के अनुसार सन् 2018 में उत्तराखण्ड तराई वन प्रभाग में मात्र 39 बाघ देखे गये थे। लगातार बाघों की संख्या में हो रही गिरावट के चलते वन विभाग के माथे पर चिंता की लकीरें साफ देखी जा सकती थीं। जिसके चलते वन विभाग ने बाघों के संरक्षण का जिम्मा उठाते हुए बाघों की संख्या में हो रही गिरावट के कारणों को जांचा परखा और उनकी देखरेख करने की ठानी। आखिरकार तीन वर्षो के अथक प्रयास के बाद वन विभाग की मेहनत रंग ले ही आयी और बाघों की संख्या में उम्मीद से अधिक वृद्धि देखने को मिली। वन विभाग के इस जिम्मेदाराना प्रयास के चलते तराई वन प्रभाग में बाघों की संख्या 39 से बढ़कर 53 हो गई। बाघों की संख्या में हुई बढ़ोत्तरी के चलते वन विभाग में उत्साह भरा हुआ है।

वन विभाग के सामने उत्साह के साथ ही खड़ी हुई एक बड़ी चुनौती

बाघों की संख्या में बढ़ोत्तरी के चलते जहां वन विभाग में उत्साह देखा गया है तो वहीं उसके सामने एक चुनौती भी खड़ी हो गई है। बीते कुछ महीनों में मानव और वन्य जीवों के संघर्ष की घटनाओं का ग्राफ भी तेजी से बढ़ा है। जिसके चलते बाघों के हमले में कई लोगों की जान भी जा चुकी हैं जिससे मानव के मन में बाघों के प्रति रोष पनप रहा है। इसी कारण वन विभाग के सामने यह एक बड़ी चुनौती है और विभाग द्वारा मानव वन्य जीव संघर्ष की बढ़ती घटनाओं को रोकने के भरपूर प्रयास किये जा रहे हैं।

उत्तराखण्ड का नाम है देश विदेश में मशहूर

 वहीं पर्यटन स्थल की दृष्टि से भी उत्तराखण्ड का नाम देश विदेश में काफी मशहूर है। अनेंको पर्यटक स्थल होने के कारण उत्तराखण्ड प्रदेश में पूरे साल पर्यटकों का आना जाना लगा रहता है। उत्तराखण्ड प्रदेश एक वन क्षेत्र होने के साथ ही एक पहाड़ी क्षेत्र भी है जहां अनेकों हिल स्टेशन और झीलें हैं जो पर्यटकों को अपनी ओर आर्कषित करती हैं। जिसके चलते देश विदेश के हजारों सैलानी यहां घूमने आते हैं।

देश की शोभा बढ़ाने हेतु विदेश से भी लाये गये थे चीते

जंगलों के लिए बाघ या चीतें किस कदर जरूरी हैं इस बात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि बीते कुछ वर्षों पहले भी भारत सरकार ने जंगलों की शोभा बढ़ाने के लिए विदेशी चीतों को मंगाया था। क्योंकि भारत में चीतों की संख्या भी लगातार गिर रही है जिससे भारत के जंगल चीतों से खाली होते जा रहे हैं। इसी कारण भारत सरकार ने जंगलों में चीतों की संख्या में बढ़ोत्तरी करने के लिए विदेश से चीते मंगाये थे, ताकि पर्यटकों की नज़रों में जंगलों की शान बनी रहे।

ज्यादा भी हो सकती है बाघों की संख्या - आर्य

तराई पश्चिमी वन प्रभाग के प्रभागीय वनाधिकारी प्रकाश चंद्र आर्य ने बताया कि तराई वन प्रभाग में लगातार जो बाघों की संख्या बढ़ रही है वह वन विभाग द्वारा बाघों का किया जा रहा संरक्षण और वन कर्मियों के प्रयासों का परिणाम ही है।

तराई पश्चिम वन प्रभाग में सन् 2018 की गणना के अनुसार जो डाटा सन् 2020 में जारी हुआ था उसमें तराई वन क्षेत्र में 39 बाघ थे और अब सन् 2023-24 में जो डाटा निकल कर आया है उसमें बाघों की संख्या 53 देखी गई है। इसके अलावा इस संख्या में बाघों के बच्चे शामिल नही है और ऐसे बाघ भी शामिल नही हैं जो कैमरे में नही आये हैं। इस आधार पर श्री आर्य ने बताया कि बाघों की संख्या ज्यादा भी हो सकती है।

जंगल में अकेले न जायें, इकट्ठे होकर ही जायें

 तराई पश्चिमी वन प्रभाग के प्रभागीय वनाधिकारी प्रकाश चंद्र आर्य ने बताया कि तराई वन प्रभाग में जहां एक ओर बाघों की संख्या बढ़ रही है तो वहीं दूसरी ओर आबादी भी बढ़ रही है जिस कारण मानव और वन्य जीवों के बीच संघर्ष भी हो रहा है जिसमें बीते कुछ महीनों में कई लोग अपनी जान भी गवां चुके हैं यह स्थिति वन विभाग के सामने सबसे बड़ी चुनौती है। श्री आर्य ने कहा कि जितने भी बाघों के संरक्षण करने वाले लोग हैं उनके लिए यह एक चुनौती है। किसी भी तरीके से मानव और वन्य जीव के बीच संघर्ष को रोकना है।

उन्होंने लोगो से अपील की है कि जंगल की तरफ कम से कम जायें, ज्यादातर संघर्ष की घटनाएं जंगल के अंदर ही हो रही हैं। इसलिए जंगल मे अकेले न जाकर एक साथ इकट्ठे होकर ही जायें और अपने कार्यों को जल्द से जल्द निपटाकर वापस आने की कोशिश करें।

बढ़ाया गया है मुआवजा, वहीं प्रक्रिया भी सरल

तराई पश्चिमी वन प्रभाग के प्रभागीय वनाधिकारी प्रकाश चंद्र आर्य ने बताया कि मानव वन्य जीव संघर्ष में यदि पशु क्षति या फसल क्षति हुई है तो सरकार द्वारा दिये जाने वाला मुआवजा भी पहले की अपेक्षा बढ़ाया गया है और मुआवजे की प्रक्रिया भी सरल कर दी गई हे। यदि कोई घटना घटित होती है तो तत्काल मुआवजा दिया जा रहा है। वहीं उन्होंने कहा कि विभाग का यही प्रयास है कि संघर्ष की घटनाओं पर अधिक से अधिक रोक लगाई जाए जिसके लिए लोगों का सहयोग भी बहुत जरूरी है।